मौलिक अधिकार के खिलाफ़ प्रस्ताव पारित करने वालों को राजद्रोह में जेल भेजे बॉम्बे हाईकोर्ट- शाहनवाज़ आलम
नयी दिल्ली, 14 मार्च 2025. बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद
बेंच द्वारा महाराष्ट्र के अहिल्यानगर के माधी ग्राम सभा द्वारा कानिफनाथ
यात्रा में मुस्लिम दुकानदारों पर बैन लगाने के फैसले पर रोक के बावजूद
ग्राम सभा के पदाधिकारियों द्वारा मुस्लिम व्यक्तियों को दुकान न लगाने
देने को कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव शाहनवाज़ आलम ने कोर्ट की अवमानना
बताते हुए पंचायत के अधिकारियों की गिरफ्तारी की मांग की है.
शाहनवाज़
आलम ने जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि संविधान का अनुच्छेद 15 स्पष्ट
तौर पर कहता है कि राज्य किसी भी नागरिक के विरुद्ध धर्म, मूलवंश, जाति,
लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई भेदभाव नहीं कर सकता.
जिसका सीधा मतलब है कि ग्राम सभा ने संविधान को चुनौती देने के मकसद से
मुस्लिम व्यक्तियों को यात्रा में दुकान नहीं लगाने देने का प्रस्ताव पास
किया था. इसलिए हाईकोर्ट को चाहिए कि वो ग्राम सभा को तत्काल भंग कर दे और
उसके सभी पदाधिकारियों के खिलाफ़ राजद्रोह का मुकदमा दर्ज कर उन्हें जेल
भेजे.
उन्होंने कहा कि यह
बॉम्बे हाईकोर्ट के लिए शर्म का विषय होना चाहिए कि संविधान को चुनौती
देने और न्यायपालिका की अवमानना करने वालों के खिलाफ़ कार्यवाई करने के लिए
पीड़ित व्यक्तियों को हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखना पड़ रहा
है. जबकि इसपर ख़ुद न्यायपालिका को स्वतः संज्ञान लेकर कार्यवाई करनी चाहिए
थी.
शाहनवाज़ आलम ने कहा
कि ऐसा लगता है कि बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने सिर्फ़ खानापूर्ति
करते हुए 11 मार्च को स्टे लगाया था जबकि इस मामले में स्टे के बजाए उसे
संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों के खिलाफ़ प्रस्ताव पारित करने वालों को
तुरंत जेल भेजना चाहिए था. स्टे देने का मतलब ही यह था कि कोर्ट
सांप्रदायिक तत्वों के खिलाफ़ सख़्ती न दिखाते हुए उनका मनोबल बढ़ा रहा था.
जो इस संदेह को पुख़्ता करता है कि न्यायपालिका का एक हिस्सा ख़ुद आरएसएस
के विभाजनकारी एजेंडे को आगे बढ़ाकर देश को सांप्रदायिक हिंसा में झोंकने
के षड्यंत्र में शामिल है.
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