यूपी के जजों के सरकार के दबाव में काम करने पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी चिंताजनक- शाहनवाज़ आलम

 


नयी दिल्ली, 2 फरवरी 2025. सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी चिंताजनक है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट और प्रदेश के जिला जज ज़मानत देने से डरते हैं. यह टिप्पणी प्रदेश की न्यायपालिका के पूरी तरह से सरकार के सामने सरेंडर हो जाने पर मुहर लगाती है. जनता और विपक्षी दलों को न्यायपालिका को सरकार के दबाव से मुक्त कराने के लिए आवाज़ उठानी होगी.

ये बातें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव और बिहार के सह प्रभारी शाहनवाज़ आलम ने साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम की 180 वीं कड़ी में कहीं. 

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के एक मौलाना सैयद शाद पर धर्मान्तरण के मामले में ज़मानत की याचिका को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ख़ारिज कर दिया था. जिसके खिलाफ वो सुप्रीम कोर्ट गये थे. उच्च न्यायालय के फैसले को पलटते हुए शीर्ष अदालत ने कहा, ‘हम इस तथ्य से अवगत हैं कि जमानत देना विवेक का मामला है. लेकिन विवेक का इस्तेमाल न्यायिक रूप से जमानत देने के सुस्थापित सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए. विवेक का मतलब यह नहीं है कि न्यायाधीश अपनी मर्जी से यह कहकर जमानत देने से मना कर दे कि धर्मांतरण बहुत गंभीर बात है.'

जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने अपने आदेश में यह भी कहा कि 'हम समझ सकते हैं कि ट्रायल कोर्ट ने जमानत देने से मना कर दिया क्योंकि ट्रायल कोर्ट शायद ही कभी जमानत देने का साहस जुटा पाते हैं, चाहे वह कोई भी अपराध हो। लेकिन कम से कम, हाईकोर्ट से यह उम्मीद की जाती थी कि वह साहस जुटाए और अपने विवेक का न्यायपूर्ण तरीके से इस्तेमाल करे।

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि इससे पहले भी इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज रोहित रंजन अग्रवाल ने एक ईसाई व्यक्ति को जमानत देने से इनकार करते हुए संविधान विरोधी टिप्पणी की थी. जिसे सुप्रीम कोर्ट ने पलटते हुए न सिर्फ़ जमानत दी बल्कि उस टिप्पणी को फैसले से हटा देने का निर्देश भी दिया था. 

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि अगर निचली अदालतें सरकार के दबाव में लोगों को जमानत नहीं देती हैं तो यह सीधे संविधान पर हमला है. इसलिए नागरिक समाज और विपक्षी दलों को सरकार और न्यायपालिका के एक हिस्से के इस गठजोड़ के खिलाफ़ मुखर होकर बोलना होगा.

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