।अशफाक कायमखानी।
झूंझुनू-राजस्थान।
हालांकि कांग्रेस का परम्परागत मतदाता होने पर झूंझुनू
विधानसभा से लगातार मुस्लिम समुदाय द्वारा कांग्रेस पार्टी से उन्हें
उम्मीदवार बनाने की मांग करने के बावजूद उन्हें आजतक उम्मीदवार नही बनाया
गया है। जबकि 1990 मे जनता दल द्वारा माहिर अजाद को यहां से उम्मीदवार
बनाने पर उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार कद्दावर नेता शीशराम ओला को हराकर
झूंझुनू से विधायक बने थे। वही 1993 मे शीशराम ओला के विधायक रहते सांसद
बनने पर रिक्त हुई झुंझुनूं सीट पर कांग्रेस ने उनके पूत्र विजेंद्र ओला को
उम्मीदवार बनाया ओर सामने भाजपा ने डाक्टर मूलसिंह शेखावत को उम्मीदवार
बनाया। उस उपचुनाव मे मुस्लिम मतो का बिखराव व गैर जाट मतो का ध्रुवीकरण
होने से भाजपा उम्मीदवार उस उपचुनाव मे मूलसिंह शेखावत चुनाव जीतकर विधायक
बन गये।
वर्तमान सांसद विजेंदर ओला पहले
तीन विधानसभा चुनाव लगातार हारते रहे है। उसके बाद लगातार चार विधानसभा
चुनाव जीतते रहे है। अभी चौथी दफा विधायक बनने के बाद लोकसभा चुनाव लड़ा
जिसमे मामूली अंतर से सांसद बनने पर रिक्त हुई विधानसभा सीट पर उपचुनाव
होने है। उपचुनाव मे ओला की पसंद पर टिकट का फैसला होगा। उनके पूत्र अमीत
ओला के कांग्रेस उम्मीदवार बनने की पूरी सम्भावना हैः लेकिन चुनाव से पहले
कांग्रेस के परम्परागत मतदाता मुस्लिम समुदाय द्वारा टिकट की मांग करना व
11-अक्टूबर को मुस्लिम न्याय मंच द्वारा विशाल सम्मेलन करके कांग्रेस को
चेतावनी देने व ओला परिवार द्वारा उम्मीदवार बनने पर परिणाम भूगतने का कहने
से कांग्रेस खेमे मे बैचेनी देखी जा रही है। इस सीट के हारने व जीतने से
राज्य सरकार पर कोई प्रभाव नही पड़ेगा। लेकिन सीट हारने से कांग्रेस व ओला
परिवार की सेहत पर असर जरूर पड़ेगा।
11-अक्टूबर को झूंझुनू के ईदगाह मैदान मे मुस्लिम न्याय मंच द्वारा आयोजित
सम्मेलन मे उपस्थित हजारों लोगो द्वारा एक स्वर मे कांग्रेस को चेताने के
पीछे समुदाय की सालो से लगातार टिकट की मांग करने पर टिकट नही मिलने की
सालो से दिल मे बैठी टिस को माना जा रहा है। वही ओला परिवार अपनी टिकट व
जीत पक्की मान कर चल रहे है। 2008 के पहले हुये चुनावों मे झुंझुनूं
विधानसभा क्षेत्र का स्वरूप अलग था ओर 2008 मे पून;सीमांकन होने पर शीशराम
ओला द्वारा अपने मन माफिक क्षेत्र करवाने पर स्वरूप अलग हो गया। तभी 2008
से लेकर विजेंदर ओला लगातार चुनाव जीत रहे है। लेकिन हाल ही मे सम्पन्न
हुये लोकसभा चुनाव मे अनुसूचित जाति व जनजाति के साथ मुस्लिम मतदाताओं के
एक मूश्त मत मिलने के बावजूद कुछ हजार मतो से जीतने पर विजेंदर ओला को
कमजोर मानने लगे है। वही कांग्रेस पार्टी मे मोजूद उनके विरोधी नेता भी
उनको पटखनी देने के लिये मोके की तलाश मे बताते है।
इसी महीने हरियाणा मे हुये आम चुनाव मे जाट व गैर जाट मतो के
ध्रुवीकरण करने की राजनीति करने पर भाजपा की सरकार बनने पर भाजपा
कार्यकर्ता उसके बाद यहां भी काफी उत्साहित है। हरियाणा के लगते झुंझुनूं
मे भी हरियाणा इफेक्ट नजर आने लगा है। पूर्व मंत्री राजेंद्र गुढा उक्त
उपचुनाव मे लड़ने की घोषणा करके खुलेआम यहां 35 व -1 बिरादरी की राजनीति
करते नजर आ रहे है। उपचुनाव मे कांग्रेस का उम्मीदवार अमीत ओला के मुकाबले
भाजपा अगर किसी जाट को उम्मीदवार बनाती है तो मुकाबला त्रिकोणीय व दिलचस्प
होगा। जिसमे कांग्रेस मे मोजूद ओला विरोधी नेता महत्वपूर्ण भूमिका मे आ
जायेंगे। वही मुस्लिम व एससी एसटी मतदाताओं की महत्वपूर्ण भूमिका हो
जायेगी।
मुस्लिम राजनीति के
हिसाब से झूंझुनू उनके लिये महत्वपूर्ण माना जाता है। राजस्थान से एक मात्र
मुस्लिम मोहम्मद अय्यूब खान लोकसभा चुनाव जीत पाये है। जो दो दफा कांग्रेस
की टिकट पर झूंझुनू लोकसभा से चुनाव लड़कर सांसद बने थे। वही 1990 मे
झूंझुनू विधानसभा से जनता दल के टिकट पर माहिर अजाद चुनाव जीतकर विधायक बने
थे।
कुल मिलाकर यह है कि
11-अक्टूबर को ईदगाह मैदान पर मुस्लिम न्याय मंच द्वारा आयोजित सम्मेलन मे
मुस्लिम समुदाय की उमड़ी भीड़ व उसमे वक्ताओं द्वारा दिये भाषणो से कांग्रेस
पार्टी मे निचे से उपर तक बैचेनी देखी जा रही है। सम्मेलन मे भारतीय
प्रशासनिक सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी अशफाक हुसैन IAS, मदरसा बोर्ड
राजस्थान के चेयरमैन एमडी चोपदार व शिक्षाविद व शेक्षणिक संस्थान संचालक
इब्राहिम खान पठान का भाषण काफी प्रभावशाली रहा। दुसरी तरफ सामाजिक मुद्दों
को लेकर इसी जिले के इंजीनियर महावीर शेखावत व कर्नल शोकत खान सहित अन्य
लोगो द्वारा राजपूत-कायमखानी एकता के प्रयास काफी गम्भीरता से किये जा रहे
है। दोनो बिरादरियों की जगह जगह सांझा बैठको का दौद शेखावाटी जनपद मे जारी
है।
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