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शेखावाटी मे राजपूत व कायमखानी एकता की लौ वास्तव मे जल पायेगी!

 


        ।अशफाक कायमखानी।

सीकर।
              हालांकि राजपूत चोहान वंश के मोटेराव चौहान के तीन पूत्रो द्वारा इस्लाम धर्म अपनाने के बाद उनकी ओलादो को कायमखानी बिरादरी के तौर पर पहचाना जाता है। दुसरी तरफ क्षत्रिय वंशज राजपूत व कायमखानी बिरादरी अलग अलग धर्म को मानने के बावजूद सालो तक इनके रहन-सहन, वेषभूषा सहित अनेक सामाजिक रितिवाज समान होते थे। आज भी शादियों व अन्य खुशी के मौको पर अपनाई जाने वाली परम्पराओं मे काफी समानता देखी जाती है। खासतौर पर सत्यावानी मे दोनो की महिलाओं का पहनावा एक जैसा नजर आता है। बोली मे "सा" का उपयोग दोनो बिरादरी करती है। भात-छूछक-मायरा-रातीजगा, आरता-गोदभराई-गठजोड़ा सहित अनेक परम्पराओं का संचालन आजभी दोनो बिरादरी मे समान होता है। पिछले एक साल से अधिक समय से नवलगढ़ के पास झाझड़ गावं के इंजीनियर महावीर सिंह झाझड़ द्वारा राजपूत-कायमखानी सम्मेलन व जगह जगह मीटिंग करके आपसी एकता कायम करने की कोशिश की जा रही है। एकता की जलाई जा रही लौ कबतक जलती है जिस पर सबकी नजरे टिकी हुई है।
                     राजस्थान मे शेखावाटी-मारवाड़ मे बहुतायत व मेवाड़-बीकाणा मे शेखावाटी के मुकाबले कम तादाद मे कायमखानी बिरादरी निवास करती है। वही इन क्षेत्रो मे कायमखानी नवाबो व राजपूत राजाओ का राज रहा है। समय के साथ राजनीतिक तौर पर इन दोनो बिरादरियों मे नजदीकी व दुरीया होती रही है। पर सामाजिक तौर पर दोनो बिरादरियों मे नजदीकियां हमेशा देखी गई। राव शेखाजी के समय रसोई को लेकर हुये समझौते से आज भी यह बंधे हुये है।
                  इंजीनियर महावीर सिंह झाझड़ द्वारा विभिन्न सामाजिक व शैक्षणिक जाग्रति के लिये राजपूत कायमखानी बिरादरी एकता अभियान को धीरे धीरे कामयाबी मिलने लगी है। इंजीनियर के साथ कर्नल शोकत खा व कर्नल रशीद खा भी कंधे से कंधा मिलाकर सहयोगी बने हुये है। इंजीनियर महावीर सिंह की कार्यशैली व स्पष्टवादिता के चलते एक साल मे दोनो बिरादरी मे अनेक मुद्दों पर आपसी सहमति बनती दिखाई दे रही है। 
              इंजीनियर महावीर सिंह झाझड़ के नेतृत्व मे दोनो बिरादरियों के सम्मेलन व मीटिंग शेखावाटी व मारवाड़ मे अनेक जगह होते रहे है। लेकिन इसी तीन अक्टूबर को चूरु कायमखानी हास्टल व पांच अक्टूबर को सीकर स्थित कायमखानी हास्टल मे दोनो समाजो की इकट्ठा मीटिंग होना व उसमे अनेक मुद्दों पर सहमति बनना बताया जा रहा है। जल्द ही दोनो बिरादरी के प्रमुख लोग विभिन्न मुद्दों को लेकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मिल सकते है।
                       राजनीतिक तौर पर राजस्थान मे देखे तो महारानी गायत्री देवी की स्वतंत्र पार्टी मे कायमखानी व राजपूत इकठ्ठा होकर जनप्रतिनिधि चुनते रहे। अनेक जगह इकठ्ठा मतदान भी करते थे।1972 तक स्वतंत्र पार्टी के नाम पर व उसके बाद 1979 के लोकसभा चुनाव तक दोनो बिरादरियों ने इकठ्ठा होकर मतदान किया। लेकिन भैरोंसिंह शेखावत के 1977 मे मुख्यमंत्री बनने से स्वतंत्र पार्टी का राजपूत मतदाताओं का झुकाव 1980 मे बनी भारतीय जनता पार्टी की तरफ हुवा ओर कायमखानी कुछ भाजपा व कांग्रेस की तरफ बंटता नजर आया। 1979 के लोकसभा चुनाव मे शेखावाटी मे कायमखानी-राजपूत मे अंदरूनी एकता कायम हुई तो झूंझुनू लोकसभा से जनता पार्टी उम्मीदवार भीमसिंह मंडावा चुनाव जीत गये एवं चूरु लोकसभा से जनता पार्टी उम्मीदवार आलम अली खा मामूली मतो से चुनाव हार गये। बताते है कि उस चुनाव मे राजपूत-कायमखानी एकठ्ठा नजर आये। उसके बाद अभी तक एकठ्ठा नजर नही आये है।
           राजस्थान की तरह उत्तरप्रदेश मे भी राजपूत से मुस्लिम बने मुस्लिम की बडी तादाद है। वो शेक्षणिक- आर्थिक व राजनीतिक तौर पर राजस्थान के कायमखानी बिरादरी से अनेक क्षेत्र मे आगे है। वो कुछ अपने आपको राजपूत मुस्लिम व कुछ लालखानी कहते है। वो सियासत मे भी आगे निकल चुके है। राजस्थान मे भैरोसिंह शेखावत ने भाजपा मे रमजान खा व यूनुस खा को उभारा वही स्वतंत्र पार्टी मे महारानी गायत्री देवी ने आलम अली खा को सिरमौर बनाया था।
                 कुल मिलाकर यह है कि इंजीनियर महावीर सिंह झाझड़ द्वारा पीछले एक साल से अधिक समय से विभिन्न मुद्दों को लेकर राजपूत-कायमखानी बिरादरी एकता अभियान धीरे धीरे जौर पकड़ने लगा है। अभी तक इनके द्वारा आयोजित मीटिंगस व सम्मेलन मे राजनीति की बू नही आई है। हां मिलकर मुद्दों पर संघर्ष करने की रणनीति पर विचार जरूर होता देखा गया है।

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