केन्द्र व राज्य सरकारो के मंत्रीमंडल से अलग होता मुस्लिम समुदाय।
।अशफाक कायमखानी।
जयपुर।
देश की आजादी के बाद पहली दफा है कि 6-जुलाई 2022 के बाद
केन्द्र सरकार के मंत्रीमंडल मे मुस्लिम प्रतिनिधित्व शुन्य हो जाने के बाद
भी मुस्लिम राजनितिज्ञ व बुद्धिमान कहे जाने वाले धार्मिक लीडर एवं
सामाजिक संस्थाओं ने उक्त परिस्थिति पर लगता है कि गम्भीरता से मनन-मंथन
किया ही नही है। भाजपा शाशित अधीकांश राज्य सरकारों के मंत्रीमंडल मे
मुस्लिम मंत्री नही है। भाजपा से बढकर कांग्रेस की बात करे तो हाल ही मे
तेलंगाना मे बनी कांग्रेस सरकार मे भी एक भी मुस्लिम मंत्री नही है।
हालांकि पहले भाजपा सहित अन्य दलो की सरकारों मे बराये नाम
मुस्लिम को मंत्री बनाकर किसी मुख्यधारा वाले विभाग की बजाय अल्पसंख्यक
मंत्रालय तक सिमित रखा तो जाता था। लेकिन अब दैश के बदले राजनीतिक माहोल मे
मुस्लिम समुदाय को मंत्रिमंडल से दूर रखने का सीलसीला चल पड़ा है। भाजपा तो
इससे बढकर यह भी करने लगी है कि लोकसभा व विधानसभा चुनाव मे अपनी पार्टी
से मुस्लिम उम्मीदवार बनाना भी लगभग बंद कर दिया है। जबकि कांग्रेस व अन्य
कथित सेक्यूलर दल भी पहले के मुकाबले कम उम्मीदवार बनाने लगे है। उसमे भी
जीतने की अधिक सम्भावनाओं वाली सीट से मुस्लिम को उम्मीदवारी से दूर रखकर
मुश्किल सीट से उम्मीदवार बनाती है।
वर्तमान मे भारत के 28-राज्यों मे से 9-को छोड़कर बाकी राज्यों की सरकारों
मे मुस्लिम मंत्री नही है। इसके साथ ही 8-केन्द्र शाशित राज्यों मे से
दिल्ली व लक्षद्वीप को छोड़कर बाकी सरकारों मे मुस्लिम मंत्री नही। कश्मीर व
उसके बने प्रदेशों मे राज्यपाल शासन चल रहा है।
शैक्षणिक व आर्थिक क्षेत्र मे मुस्लिम पहले से ही पिछड़ चुकाहै।
वहीं भारतीय ब्यूरोक्रेसी मे मुस्लिम ना के बराबर है। वो भी अब धीरे धीरे
प्रतिशत गिरता जा रहा है। देश चलाने के लिये केन्द्र व राज्य सरकारें विकास
व अन्य तरह की पोलिसी बनाती है। उस पोलिसी को लागू करने का काम
ब्यूरोक्रेसी करती है। दोनो ही जगह मुस्लिम प्रतिनिधित्व घटता गया तो
भविष्य मे बनने वाले हालातो का अंदाजा भलीभांति लगाया जा सकता है। मुस्लिम
समुदाय की अधीकांश धार्मिक तंजीमे जकात जमा करने व अपनी संस्था का प्रचार
प्रसार करने मे अधिक रुचि रखने मे विश्वास रखती है। कुछ धार्मिक संस्थाए
देश भर से जकात जमा करके केवल धार्मिक शिक्षा के बहाने उसका अपने स्तर पर
उपयोग करने लगी रहती है। दिल्ली का जकात फाऊंडेशन सहित कुछ संस्थाए जरूर
अच्छा काम कर रही है। लेकिन वो एक ही फिल्ड मे काम कर पा रही है।
कुल मिलाकर यह है कि देश के बदलते हालात पर राजनीतिक
लीडरशिप के अलावा धार्मिक व सामाजिक संस्थाओं को सर जोड़कर बैठकर कारण व
निवारण तलाश करना होगा। अन्यथा परिस्थितियां जटिल स्थिति तक पहुंच सकती है।
वर्तमान मे भाजपा मुस्लिम समुदाय को राजनीतिक तौर पर हाशिये पर धकेलने मे
कोई कोरकसर नही छोड़ रही है। जबकि कांग्रेस व अन्य कथित सेक्युलर दल मुस्लिम
समुदाय को वोट बैंक से आगे समझने की कोशिश ही नही करना चाहते। वर्तमान
भाजपा मे कांग्रेस से आये हुये नेताओं का बडा वर्ग यह साबित करता है कि
कांग्रेस मे रहते हुये भी यह उसी ऐजेण्डे पर काम करते रहे होगे जिस एजेण्डे
पर आज काम कर रहे है।
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